श्राद्धकर्म : पितृऋण चुकाने का सहज एवं सरल मार्ग

हिंदू धर्म में उल्लेखित ईश्वरप्राप्ति के मूलभूत सिद्धांतोंमेंसे एक सिद्धांत ‘देवऋण, ऋषिऋण, पितृऋण एवं समाजऋण, इन चार ऋणों को चुकाना है । इनमें से पितृऋण चुकाने के लिए ‘श्राद्ध’ करना आवश्यक है । माता-पिता तथा अन्य निकटवर्ती संबंधियों की मृत्योपरांत, उनकी आगे की यात्रा सुखमय एवं क्लेशरहित हो तथा उन्हें सद्गति प्राप्त हो, इस उद्देश्य से किया जानेवाला संस्कार है ‘श्राद्ध’ । श्राद्धविधि करने से अतृप्त पितरों के कष्ट से मुक्ति होने से हमारा जीवन भी सुखमय होता है ।

वर्तमान वैज्ञानिक युगकी युवा पीढी के मनमें ऐसी संभ्रांति उभरती है कि, ‘श्राद्ध’ अर्थात ‘अशास्त्रीय एवं अवास्तव कर्मकांड का आडंबर’ । धर्म शिक्षा का अभाव, अध्यात्म के विषय में अनास्था, पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव, धर्मद्रोही संगठनों द्वारा हिंदु धर्म की प्रथा-परंपराओंपर सतत द्वेषपूर्ण प्रहार इत्यादि का यह परिणाम है । श्राद्ध अंतर्गत मंत्रोच्चारण में पितरों को गति प्रदान करने की सूक्ष्म शक्ति समाई हुई है; इसलिए श्राद्धविधि द्वारा पितरों को मुक्ति मिलना संभव होता है ।

१. श्राद्ध मृत्यु-तिथि पर क्यों करना चाहिए ?
प्रत्येक कार्य का कोई-न-कोई कारण होता है । उसका प्रभाव कर्ता, समय, स्थल आदि पर निर्भर होता है । इन सभी का उचित मेल होने पर, कार्य की सफलता निच्छित होती है तथा कर्ता को विशेष लाभ होता है । जब कार्य ईश्वर की योजनानुसार होता है, तब वह इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान, इन तीन शक्तियों की सहायता से सगुण रूप धारण कर, साकार होता है । प्रत्येक तिथि, उस दिन जन्मे व्यक्ति को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करनेवाली स्रोत होती है । अतः, विशिष्ट तिथि पर जन्मे विशिष्ट जीव के नाम से किया जानेवाला कर्म, उसे ऊर्जा प्रदान करता है । प्रत्येक कार्य विशिष्ट तिथि अथवा मुहूर्त पर करना विशेष लाभदायक है; क्योंकि उस दिन उन कर्मों का कालचक्र, उनका प्रत्यक्ष होना तथा उनका परिणाम, इन सभी के स्पंदन एक-दूसरे के लिए सहायक होते हैं । ‘तिथि’, उस विशिष्ट घटनाचक्र को पूरा करने के लिए आवश्यक तरंगों को सक्रिय करती है ।

२. पितृपक्ष में श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?
पितृपक्ष में वायुमंडल में तिर्यक (रज-तमात्मक) तथा यम तरंगों की अधिकता होती है । इसलिए, पितृपक्ष में श्राद्ध करने से रज-तमात्मक कोषवाले पितरों के लिए पृथ्वी के वायुमंडल में आना सरल होता है । इससे ज्ञात होता है कि हिन्दू धर्म में बताए गए धार्मिक कृत्य विशिष्ट काल में करना अधिक कल्याणकारी है ।

अ. वार्षिक श्राद्ध करने के उपरांत भी पितृपक्ष में श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?
वार्षिक श्राद्ध किसी एक व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर किया जाता है । इसलिए, ऐसे श्राद्ध से उस विशेष पितर को गति मिलती है और उसका ऋण चुकाने में सहायता होती है । यह हिन्दू धर्म में व्यक्तिगत स्तर पर ऋणमुक्ति की व्यष्टि उपासना है तथा पितृपक्ष में श्राद्ध कर सभी पितरों का ऋण चुकाना, समष्टि उपासना है । व्यष्टि ऋण चुकाने से उस विशेष पितर के प्रति कर्तव्यपालन होता है तथा समष्टि ऋण चुकाने से एक साथ सभी पितरों से लेन-देन पूरा होता है । जिनसे हमारा घनिष्ठ संबंध होता है, उन्हीं की एक-दो पीढियों के पितरों का हम श्राद्ध करते हैं; क्योंकि उन पीढियों से हमारा प्रत्यक्ष संबंध रहा होता है । ऐसे पितरों में, अन्य पीढियों की अपेक्षा पारिवारिक आसक्ति अधिक होती है । उन्हें इस आसक्ति-बंधन से मुक्त कराने के लिए वार्षिक श्राद्ध करना आवश्यक होता है । इनकी तुलना में उनके पहले के पितरों से हमारा उतना गहरा संबंध नहीं रहता । उनके लिए पितृपक्ष में सामूहिक श्राद्ध करना उचित है । इसलिए, वार्षिक श्राद्ध तथा पितृपक्ष का महालयश्राद्ध, दोनों करना आवश्यक है ।

आ. पति से पहले मरनेवाली पत्नी का श्राद्ध पितृपक्ष की नवमी (अविधवा नवमी) तिथि पर ही क्यों करना चाहिए ?
‘नवमी के दिन ब्रह्मांड में, रजोगुणी पृथ्वी-तत्त्व तथा आप-तत्त्व से संबंधित शिवतरंगों की अधिकता रहती है । ये शिव-तरंगें श्राद्ध में प्रक्षेपित होनेवाली मंत्र-तरंगों की सहायता से सुहागन की लिंगदेह को प्राप्त होती हैं । इस दिन शिवतरंगों का प्रवाह भूतत्त्व और आपतत्त्व से मिलकर संबंधित लिंगदेह को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करने में सहायता करता है । इससे, सुहागिन के शरीर में पहले से स्थित स्थूल शक्तितत्त्व का संयोग सूक्ष्म शिवशक्ति के साथ सरलता से होता है और सुहागिन की लिंगदेह तुरंत ऊपरी लोकों की ओर प्रस्थान करती है ।

इस दिन शिवतरंगों की अधिकता के कारण सुहागिन को सूक्ष्म शिव-तत्त्व मिलता है । फलस्वरूप, उसके शरीर में स्थित सांसारिक आसक्ति के गहरे संस्कारों से युक्त बंधन टूटते हैं, जिससे उसे पति-बंधन से मुक्त होने में सहायता मिलती है । इसलिए, रजोगुणी शक्तिरूप की प्रतीक सुहागिन का श्राद्ध महालय (पितृपक्ष) में शिवतरंगों की अधिकता दर्शानेवाली नवमी तिथि पर करते हैं ।

३. श्राद्ध का महीना ज्ञात है, किंतु तिथि ज्ञात नहीं है, तब उस माह की शुक्ल अथवा कृष्ण पक्ष की एकादशी अथवा अमावस्या तिथि पर श्राद्ध क्यों करना चाहिए ?
इस दिन वायुमंडल में पितरों के लिए सहायक यमतरंगें अधिक होती हैं । अतः, इस दिन जब पितरों का मंत्र से आवाहन किया जाता है, तब मंत्र की शक्ति यमतरंगों के माध्यम से पितरों तक पहुंची है । इससे पितर अल्पकाल में आकर्षित होते हैं और यमतरंगों के प्रबल प्रवाह पर आरूढ होकर, पृथ्वी के वायुमंडल में सहजता से प्रवेश करते हैं ।

 

 प्राची जुवेकर
सनातन संस्था

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *